"बचपन", by deepak sharma Subscribe to rss feed for deepak sharma

"छोटी सी ये,उम्र
सुहानी,
बचपन सी,बचपन की कहानी,
कुछ इठलाती,कुछ इतराती,
नन्हीं सी,परियों की
रानी,
आँखो में सपने,सतरंगी,
सपनों की,दुनियाँ
बहुरंगी
चैहरे की,रंगत नारंगी,
पंख बिना यूँ,उड़े
जिंदगी,
क्या सपनों सी,ये
जिंदगानी,
जीने को मिलती,ये कहानी,
मिलकर,फिर क्यों,खो
जाती है,
सपना बन कर ,रह जाती है"
Posted: 2017-11-29 23:12:56 UTC

This poem has no votes yet. To vote, you must be logged in.
To leave comments, you must be logged in.