"मन"

By deepak sharma •
मन ही मन में,कितनी बातें,
हम खुद से,कर जाते हैं,
दूर गगन में,उड़ते पंक्षी,
दूर कहीं,खो जाते है,
मन ही मन में--,
मन चंचल है,बहके हरदम,
देखे है यह,ख्वाब वही,
जिन राहों पर,चले कभी ये,
उन पर ही,रुक जाते हैं,
मन ही मन मे,कितनी बातें,
हम खुद से,कर जाते है,
कितना भी दूर,रहें उनसे,
कितना भी,दिल को समझायें,
पर जब भी आँखें,बंद करें,
वह ख्वाबों,मे आ जाते हैं,
मन ही मन में,कितनी बातें,
हम खुद से,कर जाते हैं,
दूर गगन में,उड़ते पंक्षी,
दूर कहीं खो जाते हैं"